“Aaj Ka Panchang :- आज 17 मार्च 2024 का शुभ मुहूर्त, पढ़ें दिशाशूल, तिथि और शुभ कार्य!!!”

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Aaj Ka Panchang :- आज 17 मार्च 2024 का शुभ मुहूर्त, पढ़ें दिशाशूल, तिथि और शुभ कार्य

                             ** आज का हिन्दू पंचांग**

                                       **वैदिक पंचांग**

 

🌞~ आज का हिन्दू पंचांग ~🌞

दिनांक – 17 मार्च 2024
दिन – रविवार
विक्रम संवत् – 2080
अयन – उत्तरायण
ऋतु – वसंत
मास – फाल्गुन
पक्ष – शुक्ल
तिथि – अष्टमी रात्रि 09:52 तक तत्पश्चात नवमी
नक्षत्र – मृगशिरा शाम 04:47 तक तत्पश्चात आर्द्रा
योग – आयुष्मान शाम 05:06 तक तत्पश्चात सौभाग्य
राहु काल – शाम 05:19 से 06:50 तक
सूर्योदय – 06:46
सूर्यास्त – 06:50
दिशा शूल – पश्चिम
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:11 से 05:59 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:24 से 01:11 तक
अभिजित मुहूर्त – दोपहर 12:24 से 01:12 तक
व्रत पर्व विवरण – संत दादू दयालजी जयंती
विशेष – अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

Aaj Ka Panchang: आज 15 मार्च 2024 का शुभ मुहूर्त, पढ़ें दिशाशूल, तिथि और शुभ कार्य
credit pinterest

♦ औषधीय गुणों से भरपूर :- ब्रह्मवृक्ष पलाश 

जिसकी समिधा यज्ञ में प्रयुक्त होती है, ऐसे हिन्दू धर्म में पवित्र माने गये पलाश वृक्ष को आयुर्वेद ने ‘ब्रह्मवृक्ष’ नाम से गौरवान्विति किया है । पलाश के पाँचों अंग (पत्ते, फूल, फल, छाल, व मूल) औषधीय गुणों से सम्पन्न हैं। यह रसायन (वार्धक्य एवं रोगों को दूर रखने वाला), नेत्रज्योति बढ़ाने वाला व बुद्धिवर्धक भी है ।

इसके पत्तों से बनी पत्तलों पर भोजन करने से चाँदी के पात्र में किये गये भोजन के समान लाभ प्राप्त होते हैं । इसके पुष्प मधुर व शीतल हैं । उनके उपयोग से पित्तजन्य रोग शांत हो जाते हैं ।

पलाश के बीज उत्तम कृमिनाशक व कुष्ठ (त्वचारोग) दूर करने वाले हैं । इसका गोंद हड्डियों को मजबूत बनाता है। इसकी जड़ अनेक नेत्ररोगों में लाभदायी है ।

पलाश व बेल के सूखे पत्ते, गाय का घी व मिश्री समभाग मिलाकर धूप करने से बुद्धि शुद्ध होती है व बढ़ती भी है । वसंत ऋतु में पलाश लाल फूलों से लद जाता है । इन फूलों को पानी में उबालकर केसरी रंग बनायें। यह रंग पानी में मिलाकर स्नान करने से आने वाली ग्रीष्म ऋतु की तपन से रक्षा होती है, कई प्रकार के चर्मरोग भी दूर होते हैं ।

पलाश के फूलों द्वारा उपचार : महिलाओं के मासिक धर्म में अथवा पेशाब में रूकावट हो तो फूलों को उबालकर पुल्टिस बना के पेड़ू पर बाँधें । अण्डकोषों की सूजन भी इस पुल्टिस से ठीक होती है ।

प्रमेह (मूत्र-संबंधी विकारों) में पलाश के फूलों का काढ़ा (50 मि.ली.) मिलाकर पिलायें ।

रतौंधी की प्रारम्भिक अवस्था में फूलों का रस आँखों में डालने से लाभ होता है ।

आँख आने पर (Conjunctivitis) फूलों के रस में शुद्ध शहद मिलाकर आँखों में आँजें ।

  ♦  रविवार विशेष  :-

  रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)

  रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)

  रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)

  रविवार सूर्यदेव का दिन है, इस दिन क्षौर (बाल काटना व दाढ़ी बनवाना) कराने से धन, बुद्धि और धर्म की क्षति होती है ।

  रविवार को आँवले का सेवन नहीं करना चाहिए ।

  स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए । इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं ।

  रविवार के दिन पीपल के पेड़ को स्पर्श करना निषेध है ।

  रविवार के दिन तुलसी पत्ता तोड़ना वर्जित है ।

♥ सूर्य की उपासना में जल (अर्घ्य) क्यों दिया जाता है :-
सूर्योपनिषद् के अनुसार समस्त देव, गंधर्व, ऋषि भी सूर्य रश्मियों में निवास करते हैं। सूर्य की उपासना के बिना किसी का कल्याण संभव नहीं है, भले ही अमरत्व प्राप्त करने वाले देव ही क्यों न हों। स्कंदपुराण में कहा गया है कि सूर्य को अर्घ्य दिए बिना भोजन करना, पाप खाने के समान है। भारतीय चिंतक पद्धति के अनुसार सूर्योपासना किए बिना कोई भी मानव किसी भी शुभ कर्म का अधिकारी नहीं बन सकता।

संक्रांतियों तथा सूर्य षष्ठी के अवसर पर सूर्य की उपासना का विशेष विधान बनाया गया है। सामान्य विधि के अनुसार प्रत्येक रविवार को सूर्य की उपासना की जाती है। वैसे प्रतिदिन प्रातःकाल रक्तचंदन से मंडल बनाकर तांबे के लोटे (कलश) में जल, लाल चंदन, चावल, लाल फूल और कुश आदि रखकर घुटने टेककर प्रसन्न मन से सूर्य की ओर मुख करके कलश को छाती के समक्ष बीचों-बीच लाकर सूर्य मंत्र, गायत्री मंत्र का जाप करते हुए अथवा निम्नलिखित श्लोक का पाठ करते हुए जल की धारा धीरे-धीरे प्रवाहित कर भगवान् सूर्य को अर्घ्य देकर पुष्पांजलि अर्पित करना चाहिए। इस समय दृष्टि को कलश के धारा वाले किनारे पर रखेंगे, तो सूर्य का प्रतिबिंब एक छोटे बिंदु के रूप में दिखाई देगा। एकाग्र मन से देखने पर सप्तरंगों का वलय भी नज़र आएगा।
फिर परिक्रमा एवं नमस्कार करें।

सिन्दूरवर्णाय सुमण्डलाय नमोऽस्तु वजाभरणाय तुभ्यम् । पद्माभनेत्राय सुपंकजाय ब्रह्मेन्द्रनारायणकारणाय ॥
सरक्तचूर्ण ससुबर्णतोयंस्त्रकूकुंकुमाट्यं सकुशं सपुष्पम् ।
प्रदत्तमादायसहेमपात्रं प्रशस्तमर्घ्य भगवन् प्रसीद ॥

शिवपुराण कैलास संहिता 6/39-40

अर्थात् सिंदूर वर्ण के से सुंदर मंडल वाले, हीरक रत्नादि आभरणों से अलंकृत, कमलनेत्र, हाथ में कमल लिए, ब्रह्मा, विष्णु और इंद्रादि (संपूर्ण सृष्टि) के मूल कारण हे प्रभो! हे आदित्य! आपको नमस्कार है। भगवन! आप सुवर्ण पात्र में रक्तवर्ण चूर्ण कुंकुम, कुश, पुष्पमालादि से युक्त, रक्तवर्णिम जल द्वारा दिए गए श्रेष्ठ अर्घ्य को ग्रहण कर प्रसन्न हों। उल्लेखनीय है कि इससे भगवान् सूर्य प्रसन्न होकर आयु, आरोग्य, धन-धान्य, क्षेत्र, पुत्र, मित्र, तेज, वीर्य, यश, कांति, विद्या, वैभव और सौभाग्य आदि प्रदान करते हैं । और सूर्यलोक की प्राप्ति होती है। ब्रह्मपुराण में कहा गया है।

मानसं वाचिकं वापि कायजं यच्च दुष्कृतम् ।
सर्वसूर्यप्रसादेन तदशेषं व्यपोहति ॥

अर्थात् जो उपासक भगवान् सूर्य की उपासना करते हैं, उन्हें मनोवांछित फल प्राप्त होता है। उपासक के सम्मुख प्रकट होकर वे उसकी इच्छापूर्ति करते हैं और उनकी कृपा से मनुष्य के मानसिक, वाचिक तथा शारीरिक सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

ऋग्वेद में सूर्य से पाप मुक्ति, रोगनाश, दीर्घायु, सुख प्राप्ति, दरिद्रता निवारण आदि के लिए प्रार्थना की गई है। वेदों में ओजस्, तेजस् एवं ब्रह्मवर्चस्व की प्राप्ति के लिए सूर्य की उपासना करने का विधान है। ब्रह्मपुराण के अध्याय 29-30 में सूर्य को सर्वश्रेष्ठ देवता मानते हुए सभी देवों को इन्हीं का प्रकाश स्वरूप बताया गया है और कहा गया है कि सूर्य की उपासना करने वाले मनुष्य जो कुछ सामग्री सूर्य के लिए अर्पित करते हैं, भगवान् भास्कर उन्हें लाख गुना करके वापस लौटा देते हैं। स्कंद पुराण काशी खंड 9/45-48 में सविता सूर्य आराधना द्वारा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष अथात् चतुर्वर्ग की फल प्राप्ति का वर्णन है। धन, धान्य, आयु, आरोग्य, पुत्र, पशुधन, विविध भोग एवं स्वर्ग आदि सूर्य की उपासना करने से प्राप्त होते हैं।

यजुर्वेद अध्याय 13 मंत्र 43 में कहा गया है कि सूर्य की सविता की आराधना इसलिए भी की जानी चाहिए कि वह मानव मात्र के समस्त शुभ और अशुभ कमों के साक्षी हैं। उनसे हमारा कोई भी कार्य या व्यवहार छिपा नहीं रह सकता।

अग्निपुराण में कहा गया है कि गायत्री मंत्र द्वारा सूर्य की उपासना-आराधना करने से वह प्रसन्न होते हैं और साधक का मनोरथ पूर्ण करते हैं।
                                                  

                                                                 🌞 ♠ हिन्दू पंचांग ♠ 🌞

♥  || धन्यवाद् ||


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