“Holi 2024: कब है होली का त्योहार? होली के शुभ दिन के दौरान क्या करें और क्या न करें”!!! |

Holi 2024: कब है होली का त्योहार? होली के शुभ दिन के दौरान क्या करें और क्या न करें |

Holi 2024: कब है होली का त्योहार? होली के शुभ दिन के दौरान क्या करें और क्या न करें |
credit wikipedia

इस वर्ष होलिका दहन 24 मार्च 2024 को आयोजित किया जाएगा। होलिका दहन, जिसे छोटी होली भी कहा जाता है, मुख्य होली उत्सव से एक रात पहले होता है। यह परिवारों और दोस्तों के लिए अलाव के आसपास इकट्ठा होने और प्रार्थना करने का समय है। यह अलाव नकारात्मकता, बुरी आदतों और अस्वास्थ्यकर विचारों जैसी बुरी चीजों को जलाने का प्रतीक है। 

      ♠ होलिका दहन 2024 :- क्या करें

♦ आपको होलिका दहन से पहले स्नान करने की सलाह दी जाती है।
♦ अलाव में लकड़ी, पत्ते, गोबर के केक, सरसों का तेल, तिल, गेहूं के दाने, सूखे नारियल और अक्षत को इकट्ठा करके एक अलाव बनाएं।
♦ अलाव के आसपास के क्षेत्र को साफ रखें।
♦ इसे साफ करने के लिए पानी और गोबर के मिश्रण का उपयोग करें।
♦ नकारात्मकता को दूर करने के लिए एक दीया जलाएं और प्रार्थना करें।
♦ विष्णु जी और धन, प्रचुरता और समृद्धि की देवी लक्ष्मी की पूजा करें।
♦ दान और दान करें, क्योंकि इस दिन इसे बहुत फायदेमंद माना जाता है।

          ♠ होलिका दहन 2024 :- क्या न करे 

♦ होलिका दहन के लिए प्लास्टिक, टायर या किसी भी सामग्री का उपयोग न करें।
♦ इस दिन पैसे उधार देने से बचें।
♦ दूसरों के प्रति किसी भी प्रकार के अभद्र व्यवहार से बचें।
♦ सड़क पर पड़ी किसी भी अज्ञात वस्तु को न छुएं।

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होलिका दहन 2024 के लिए याद रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें :-

होलिका दहन पर व्रत रखना बहुत फायदेमंद होता है। उपवास के दौरान आपको केवल फल और दूध से बने उत्पादों का सेवन करना चाहिए। दूसरी ओर, स्वच्छता बनाए रखें। पूजा करने से पहले और बाद में हाथ अच्छी तरह से धोएं।

होलिका दहन के लिए महत्वपूर्ण पूजा सामग्री :-

यहाँ होलिका दहन पूजा के लिए महत्वपूर्ण पूजा सामग्री दी गई है। एक पवित्र वातावरण बनाने के लिए प्रार्थना करते समय इन पूजा वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, ये वस्तुएँ नकारात्मक ऊर्जाओं को भी सीमित करती हैं।

इनमें शामिल हैं :-  फूलों की माला  मूंग  बटाशा  नारियल  गुलाल  कच्चा कपास  गुड़

          ♠ ♠ होली की कथा :-

बहुत समय पहले हिरण्यकश्यप नाम के राक्षस ने ब्रह्मा देव की तपस्या करके अमर होने का वरदान मांगा। जब बह्मा देव ने अमरता का वरदान देने से मना कर दिया, तो उसने मांगा कि उसे संसार में रहने वाला कोई भी जीव जन्तु, राक्षस, देवी, देवता और मनुष्य मार न पाए। साथ ही न वो दिन में मरे और न ही रात के समय, न तो पुथ्वी पर मरे और न ही आकाश में, न तो घर के अंदर और न ही बाहर और न ही शस्त्र से मरे और न ही अस्त्र से।

हिरण्यकश्यप की तपस्या से ब्रह्मा देव खुश थे ही, इसलिए अमरता के एक वरदान के बदले उन्होंने ये सारे वरदान उसे दे दिए। इसे पाकर उसने हर जगह तबाही मचाना शुरू कर दिया। उससे मनुष्य ही नहीं, देवता भी परेशान रहने लगे। वह अपनी शक्ति से दुर्बलों को सताने लगा।

हिरण्यकश्यप से बचने के लिए लोगों को हिरण्यकश्यप की पूजा करनी पड़ती थी। भगवान की जगह जो भी हिरण्यकश्यप की पूजा करता वह उसे छाेड़ देता और जो उसे भगवान मानने से मना करता, उसे मरवा देता या अन्य सजा देता।

समय के साथ राक्षस हिरण्यकश्यप का आंतक बढ़ता गया। कुछ वक्त बीतने पर हिरण्यकश्यप के घर विष्णु भगवान के परम भक्त प्रहलाद का जन्म हुआ। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को कई बार विष्णु भगवान की पूजा करने से मना किया और कहा, “मैं ही भगवान हूं। तुम मेरी आराधना करो।”

हर बार हिरण्यकश्यप की बात सुनकर प्रहलाद कहते, “मेरे सिर्फ एक ही भगवान हैं और वो भगवान विष्णु हैं। प्रहलाद की बातें सुनकर हिरण्यकश्यप ने उन्हें मारने की कई कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। भगवान विष्णु अपनी शक्ति से हर बार हिरण्यकश्यप के सारे प्रयास विफल कर देते थे।

एक दिन हिरण्यकश्यप के घर उसकी बहन होलिका आई। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। उसके पास एक कंबल था, जिसे लपेटकर यदि वह आग में चली जाए, तो आग उसे नहीं जला सकती थी। हिरण्यकश्यप को अपने बेटे से परेशान देखकर होलिका ने कहा, “भैया, मैं अपनी गोद में प्रहलाद को लेकर आग में बैठ जाऊंगी, जिससे वह जल जाएगा और आपकी परेशानी खत्म हो जाएगी।”

हिरण्यकश्यप ने इस योजना के लिए हामी भर दी। उसके बाद होलिका अपनी गोद में प्रहलाद को बैठाकर आग पर बैठ गई। उसी वक्त भगवान की कृपा से हाेलिका का कम्बल प्रहलाद के ऊपर आ गया और होलिका जलकर खाक हो गई। प्रहलाद एक बार फिर प्रभु विष्णु की कृपा से बच गए।

आग में जिस दिन होलिका जलकर भस्म हो गई थी, उसी दिन को आज तक लोग होलिका दहन के नाम से जानते हैं। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखते हुए खुशी में होलिका दहन के अगले दिन रंगों से होली खेली जाती है।

कहानी से सीख :- बुराई कितनी भी ताकतवर हो, एक दिन जीत अच्छाई की ही होती है। इसी वजह से हमेशा बुराई का मार्ग छोड़कर अच्छाई का मार्ग अपनाना चाहिए |

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