Jagannath Puri जगन्नाथ पुरी मंदिर के 6 आश्चर्यजनक तथ्य और इतिहास के बारे में संपूर्ण जानकारी

Jagannath Puri जगन्नाथ पुरी मंदिर के आश्चर्यजनक तथ्य और इतिहास :-

श्री जगन्नाथ मंदिर ओडिशा राज्य के पुरी में भारत के पूर्वी तट पर स्थित भगवान जगन्नाथ(श्री कृष्ण) को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर है। इसके अलावा यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल और तीर्थस्थल है। जहां लाखों की संख्या में पर्यटक मंदिर को देखने के लिए आते हैं। जगन्नाथ शब्द का अर्थ होता है संसार या जगत के स्वामी होता है। इसी कारण इस नगर को जगन्नाथपुरी या पुरी कहा जाता है। यह मंदिर वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है जो भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समपर्पित है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धामों में से एक माना जाता है।

Jagannath Puri जगन्नाथ मंदिर का इतिहास :-

गंग वंश काल से प्राप्त हुए प्रमाणों के अनुसार जगन्नाथ पुरी मंदिर का निर्माण कलिंग के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने शुरू कराया था। इस राजा ने अपने शासनकाल यानि 1078 से 1148 के बीच मंदिर के जगमोहन और विमान भाग का निर्माण कराया था। इसके बाद सन् 1197 में ओडिशा के शासक भीम देव ने इस मंदिर के वर्तमान रूप का निर्माण कराया।

माना जाता है कि जगन्नाथ मंदिर में 1448 से ही पूजा अर्चना की जा रही है। लेकिन इसी वर्ष एक अफगान ने ओडिशा पर आक्रमण किया था और भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों और मंदिर को ध्वस्त करवा दिया। लेकिन बाद में राजा रामचंद्र देव ने जब खुर्दा में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया तो जगन्नाथ मंदिर और इसकी मूर्तियों को दोबारा प्रतिस्थापित कराया।

तभी से से इस मंदिर में दर्शन की सुविधा उपलब्ध है।

Jagannath Puri जगन्नाथ मंदिर के बारे में रोचक तथ्य :-

इस मंदिर की कुछ विशेष खासियत है जिसके कारण पर्यटक जगन्नाथ पुरी मंदिर का दर्शन करने के लिए आते हैं। आइये जानते हैं जगन्नाथ मंदिर के कुछ रोचक तथ्यों के बारे में।

  1. जगन्नाथ मंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर के ऊपर लगा झंडा हमेशा हवा के उल्टी दिशा में लहराता है। ऐसा प्राचीन काल से ही हो रहा है लेकिन अभी तक इसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों के बारे में पता नहीं चल पाया है। श्रद्धालुओं के लिए सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक बात है।
  2. जगन्नाथ मंदिर के शीर्ष पर सुदर्शन चक्र लगा हुआ है। यह अष्टधातु से बना है, इसे नीलचक्र के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन इसकी विशेषता यह है कि आप पुरी के किसी भी स्थान से खड़े होकर इस चक्र को देखें वह हमेशा आपको अपने सामने ही दिखायी देगा। यह वास्तव में आश्चर्य का विषय है, जो इसे खास भी बनाता है।
  3. मंदिर के ऊपर लगा झंडा रोजाना शाम को बदला जाता है। खास बात यह है कि इसे बदलने वाला व्यक्ति उल्टा चढ़कर झंडे को बदलता है। जिस समय झंडा बदला जाता है, मंदिर के प्रांगण में इस दृश्य को देखने वालों की भारी भीड़ जमा होती है। झंडे के ऊपर भगवान शिव का चंद्र बना होता है।
  4. मंदिर परिसर में पुजारियों द्वारा प्रसादम को पकाने का अद्भुत और पारंपरिक तरीका है। प्रसाद पकाने के लिए सात बर्तनों को एक दूसरे के ऊपर रखा जाता है और लकड़ी का उपयोग करके इसे पकाया जाता है। ऊपर के बर्तन का प्रसाद सबसे पहले और बाकी अंत में पकता है।
  5. जगन्नाथ पुरी में हवा की दिशा में भी विशेषता देखने को मिलती है। अन्य समुद्री तटों पर प्रायः हवा समुद्र की ओर से जमीन की ओर आती है लेकिन पुरी के समुद्री तटों पर हवा जमीन से समुद्र की ओर आती है। इसके कारण पुरी अनोखा है।
  6. आमतौर पर किसी भी मंदिर के गुंबद की छाया उसके प्रांगण में बनती है। लेकिन जगन्नाथ पुरी मंदिर के गुंबद की छाया अदृश्य ही रहती है। मंदिर के गुंबद की छायी लोग कभी नहीं देख पाते हैं।
  7. वैसे तो हम अक्सर आकाश में पक्षियों को उड़ते हुए देखते हैं। लेकिन जगन्नाथ मंदिर की विशेषता यह है कि इस मंदिर के गुंबद के ऊपर से होकर कोई पक्षी नहीं उड़ता है और यहां तक कि हवाई जहाज भी मंदिर के ऊपर से होकर नहीं गुजरता है। अर्थात् भगवान से ऊपर कुछ भी नहीं है।
  8. हिंदू पौराणिक कथाओं में भोजन को बर्बाद करना एक बुरा संकेत माना जाता है। मंदिर के संचालक इसका अनुसरण करते है। मंदिर जाने वाले लोगों की कुल संख्या हर दिन 2,000 से 2, 00,000 लोगों के बीच होती है। लेकिन मंदिर का प्रसादम रोजाना इस चमत्कारिक ढंग से तैयार किया जाता है कि कभी भी व्यर्थ नहीं होता है और ना ही कम पड़ता है। इसे प्रभु का चमत्कार माना जाता है।

Jagannath Puri जगन्नाथ मंदिर का रथयात्रा महोत्सव :-

जगन्नाथ पुरी मंदिर का रथयात्रा उत्सव पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। वर्ष में एक बार जून-जुलाई के महीने में भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकाली जाती है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों लोगों को तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान करके मंदिर से बाहर नगर की यात्रा पर निकाला जाता है।

रथयात्रा निकालने का उत्सव मध्यकाल से ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही भारत के कई वैष्णव कृष्ण मंदिरों में रथयात्रा निकाली जाती है। यह रथयात्रा महोत्सव 10 दिनों तक चलता है। रथों को मंदिरों के तरह ही बनाया एवं सजाया जाता है। रथों का निर्माण जनवरी एवं फरवरी माह से ही शुरू हो जाता है।

Jagannath Puri जगन्नाथ मंदिर में पूजा का समय :-

जगन्नाथ मंदिर सप्ताह के सातों दिन खुला रहता है। इस मंदिर की पूजा एवं रस्म प्रणाली बहुत विस्तृत है और अनुष्ठान कराने के लिए मंदिर परिसर में सैकड़ों पंडे और पुजारी मौजूद हैं।

यदि आप जगन्नाथ पुरी मंदिर में दर्शन पूजन के लिए जाना चाहते हैं तो आपकी सुविधा के लिए यह बता दें कि यह मंदिर सुबह पांच बजे से रात ग्यारह बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है।

सुबह पांच बजे मंदिर खुलने के बाद सबसे पहले द्वारका पीठ और मंगला आरती होती है। इसके बाद सुबह छह बजे मैलम होता है। भगवान जगन्नाथ के कपड़े और फूलों को हटाने को मैलम कहा जाता है। इस समय कुछ विशेष सेवक पिछली रात पहनायी गई भगवान के शरीर से कपड़े, तुलसी के पत्ते और फूलों को हटाते हैं।

सुबह नौ बजे मंदिर में गोपाल बल्लव पूजा होती है, जिसमें भगवान को नाश्ता कराया जाता है। जिसमें दही, स्वीट पॉपकॉर्न, खोवा लड्डू आदि का भोग लगाया जाता है। सुबह 11 बजे मध्हाह्न धूप (Madhynha Dhupa) पूजा होती है। इसमें सुबह की अपेक्षा अधिक मात्रा में खाद्य पदार्थों से भगवान को भोग लगाया जाता है। इस समय जगन्नाथ मंदिर में दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं को 10 रूपये का टिकट देना पड़ता है।

सुबह मंदिर खुलने से लेकर रात में मंदिर बंद होने तक इसी प्रकार पूरे दिन अलग अलग तरह की पूजा और आरती होती रहती है। शाम के समय मंदिर में भोग और प्रसाद का वितरण होता है।

Jagannath Puri जगन्नाथ मंदिर जाने का बढ़िया समय :-

पुरी का मौसम समुद्र के कारण बहुत प्रभावित होता है। क्योंकि यह बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित है। यहां सुखद सर्दियों, गर्म और आर्द्र मौसम के साथ  उष्णकटिबंधीय जलवायु यानि अक्टूबर से अप्रैल तक की अवधि को पुरी की यात्रा का सबसे अच्छा समय माना जाता है। पुरी बीच की सफेद रेत अक्टूबर से अप्रैल तक पर्यटकों को खूब लुभाती है। इन महीनों के दौरान आप यहां आने की योजना बना सकते हैं।

Jagannath Puri जगन्नाथ मंदिर कैसे पहुंचे :-

जगन्नाथ पुरी पहुंचना बहुत आसान है। इसके आसपास के शहरों जैसे उड़ीसा और भुबनेश्वर से भी यहां पहुंचने की अच्छी सुविधा उपलब्ध है। आइये जानते हैं पुरी कैसे पहुंचें।

हवाई जहाज से :-

पुरी का निकटतम हवाई अड्डा भुबनेश्वर है जो पुरी से 60 किमी की दूरी पर है। आप भुवनेश्वर एयरपोर्ट से बस, टैक्सी या कार बुक करके पुरी पहुंच सकते हैं।

ट्रैन द्वारा :-

पुरी ईस्ट कोस्ट रेलवे पर एक टर्मिनस है जो नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, ओखा, अहमदाबाद, तिरुपति आदि के साथ सीधे एक्सप्रेस और सुपर फास्ट ट्रेनों द्वारा जुड़ा है। कुछ महत्वपूर्ण ट्रेनें कोलकाता (हावड़ा) पुरी हावड़ा एक्सप्रेस, जगन्नाथ एक्सप्रेस, नई दिल्ली पुरुषोत्तम एक्सप्रेस आदि हैं। पुरी से 44 किलोमीटर दूर खुर्दा रोड स्टेशन चेन्नई और पश्चिमी भारत के लिए ट्रेन का सुविधाजनक रेलमार्ग है। स्टेशन शहर से लगभग एक किमी उत्तर में है। इसके बाद रिक्शा और ऑटो रिक्शा से आप मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

बस द्वारा

गुंडिचा मंदिर के पास बस स्टैंड हैं जहां से पुरी जाने के लिए बसें मिलती हैं। इसके अलावा भुबनेश्वर, कटक से भी बस द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है। कोलकाता और विशाखापट्टनम से भी पुरी के लिए कई बसें चलती हैं।

विशेष :- भगवन जगन्नाथ आप सभी पाठको की मनोकामना पूर्ण करे।

।। जय जगन्नाथ ।।

|| ♥ धन्यवाद् ♥ ||


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